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Thursday, November 8, 2018

HISTORY OF BARMER

     HISTORY OF BARMER

 बाड़मेर शहर की बड़ी बड़ी इमारतों के बीच है कई एेसे भवन जो आज भी इतिहास को जिंदा रखे हुए हैं। इन भवनों की अपनी रोचक कहानियां है। वर्ष 1935 में जब अंग्रेजों का शासन था और शहर में अंग्रेज हाकिम बैठता था तब रेलवे लाइन बिछी थी। इस रेलवे लाइन को बिछाने के बड़ा ठेकेदार थे काछबाराम मेगवाल। रेलवे स्टेशन बना तो काछबाराम ने इसके ठीक सामने अपनी हवेली का निर्माण करवाया था। 
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बाड़मेर से हैदराबाद तक रेलवे की गोल बिल्डिंग का निर्माण भी काछबाराम ने ही किया था। काछबाराम की तहेदिल से इच्छा थी कि रेल से उतरने वाले यात्री को पहले उनकी हवेली नजर आनी चाहिए। जहां अभी बिक्रीकर का कार्यालय है वहां अंग्रेजों के जमाने के हाकिम बैठा करते थे। इसके ठीक सामने ओल्ड स्कूल में जेल हुआ करती थी।
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यहां तक था पुराना बाड़मेर- 
बाड़मेर के गढ़ से लेकर जैनों का वास, ढाणी बाजार और जोशियों का पुराना वास में बाड़मेर आबाद था। यहां कुछ घर ही हुआ करते थे। शहर कोतवाली से आगे रेलवे स्टेशन तक सुनसान इलाका रहता था। इक्कादुक्का घर मुश्किल से थे।
1952 में बनी है बाड़मेर कलक्ट्रेट- 
बाड़मेर के कलक्ट्रेट का भवन 1952 में निर्मित हुआ। इस भवन की मरम्मत का कार्य होने से मूल स्वरूप बदल गया है लेकिन गुम्बद अभी तक भी पुराने पत्थर का ही नजर आता है। कलक्ट्रेट के इस भवन का निर्माण पुरानी तकनीक से किया गया जिसमें छत काफी ऊंची हुआ करती थी। 
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बाड़मेर कुछ जानकारियां
- रावत भीमा ने वर्तमान बाड़मेर की स्थापना की, गढ स्थित नागणेचियां माता मंदिर में इसका शिलालेख मौजूद
- भीमा की छठी पीढ़ी में भाराजी बाड़मेर के रावत हुए, इनके पांचों पुत्र पांच भाराणी कहलाए
- 1836 में अंग्रेज कप्तान जैकसन बाड़मेर आए, यहां की सुरक्षा के लिए एक सुपरिटेंडेंट, बोम्बे रेग्युलर केवेलरी का एक दस्ता वं गायकवाड़ इन्फेन्ट्री के सौ घोडे़ रखे गए
- 1891 की जनगणना में बाड़मेर की जनसंख्या 5610 ही थी
- प्रारंभिक शिक्षा पौशालों से शुरू हुई। 1910 में मनुदास जोशी, रामबक्श एवं अचलदास, 1910 में चुन्नीलाल व्यास, 1920 में प्रेमजी की पोशाल चलती थी।
-1946-47 में जिला मुख्यालय पर हाईस्कूल बनी। इसमें मैट्रिक में बीस विद्यार्थी बैठे थे।
-1956 में बाड़मेर रेल सेवा से जुड़ा
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रावत भीमा ने बसाया था
जूना बाड़मेर 12 वीं सदी में बसा था और वर्तमान में बसा बाड़मेर 1606 में राव भीमा ने बसाया था। यहां गढ़ से ही बसावट शुरू हुई थी। बाड़मेर को किस तिथि को बसाया गया था इसका प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। इस कारण बाड़मेर का स्थापना दिवस नहीं मनाया जाता है। - रावत त्रिभुवनसिंह
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पधारो म्हारो राजस्थान !

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