BIKANER INTRO TOURIST SPOT IN NIKANER RAJINFO ABOUT RJSTHAN
बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था
ऐतिहासिक बीकानेर राज्य के उत्तर में पंजाब का फिरोजपुर जिला, उत्तर-पूर्व में हिसार, उत्तर-पश्चिम में भावलपुर राज्य, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में जयपुर और दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर राज्य, पूर्व में हिसार तथा लोहारु के परगने तथा पश्चिम में भावलपुर राज्य थे।
वर्तमान बीकानेर जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह २७ डिग्री ११ और २९ डिग्री ०३ उत्तर अक्षांश और ७१ डिग्री ५४ और ७४ डिग्री १२ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल ३२,२०० वर्ग किलोमीटर है। बीकानेर के उत्तर में गंगानगर तथा फिरोजपुर, पश्चिम में जैसलमेर, पूर्व में नागौर एंव दक्षिण में जोधपुर स्थित है।
बीकानेर जिले के साथ पाकिस्तान से लगने वाली अन्तर्राष्ट्रीय सिमा की लंबाई 168 किमी है जोकि राजस्थान के राज्यो के साथ लगने वाली सबसे छोटी सिमा है।
जलवायू
यहां की जलवायु सूखी, पंरतु अधिकतर अरोग्यप्रद है। गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पडना यहां की विशेषता है। इसी कारण मई, जून और जुलाई मास में यहां लू (गर्म हवा) बहुत जोरों से चलती है, जिससे रेत के टीले उड़-उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाते हैं। उन दिनों सूर्य की धूप इतनी असह्महय हो जाती है कि यहां के निवासी दोपहर को घर से बाहर निकलते हुए भी भय खाते हैं। कभी-कभी गर्मी के बहुत बढ़ने पर अकाल मृत्यु भी हो जाती है। बहुधा लोग घरों के नीचे भाग में तहखाने बनवा लेते हैं, जो ठंडे रहते है और गर्मी की विशेषता होने पर वे उनमें चले जाते हैं। कड़ी भूमि की अपेक्षा रेत शीघ्रता से ठंड़ा हो जाता है। इसलिए गर्मी के दिनों में भी रात के समय यहां ठंडक रहती है। शीतकाल में यहां इतनी सर्दी पड़ती है कि पेड़ और पौधे बहुधा पाले के कारण नष्ट हो जाते है।
बीकानेर में रेगिस्तान की अधिकता होने के कारण कुएँ का बहुत अधिक महत्व है। जहां कहीं कुआँ खोदने की सुविधा हुई अथवा पानी जमा होने का स्थान मिला, आरंभ में वहां पर बस्ती बस गई। यही कारण है कि बीकानेर के अधिकांश स्थानों में नामों के साथ सर जुड़ा हुआ है, जैसे कोडमदेसर, नौरंगदेसर, लूणकरणसर आदि। इससे आशय यही है कि इस स्थान पर कुएं अथवा तालाब हैं। कुएं के महत्व का एक कारण और भी है कि पहले जब भी इस देश पर आक्रमण होता था, तो आक्रमणकारी कुओं के स्थानों पर अपना अधिकार जमाने का सर्व प्रथम प्रयत्न करते थे। यहां के अधिकतर कुएं ३०० या उससे फुट गहरे हैं। इसका जल बहुधा मीठा एंव स्वास्थ्यकर होता है।

कृषि
अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ एंव जलविहीन मरुभूमि का एक अंश है। जगह-जगह रेतीले टीलें हैं जो बहुत ऊँचे भी हैं। बीकानेर का दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है जहां अच्छी वर्षा हो जाने पर किसी प्रकार पैदावार हो जाती है। उत्तर-पूर्व की भूमि का रंग कुछ पीलापन लिए हुए हैं तथा उपजाऊ है।
यहां अधिकांश भागों में खरीफ फसल होती है। ये मुख्यत: बाजरा, मोठ, ज्वार,तिल और रुई है। रबी की फसल अर्थात गेंहु, जौ, सरसो, चना आदि केवल पूर्वी भाग तक ही सीमित है। नहर से सींची जानेवाली भूमि में अब गेंहु, मक्का, रुई, गन्ना इत्यादि पैदा होने लगे है।
खरीफ की फसल यहां प्रमुख गिनी जाती है। बाजरा यहां की मुख्य पैदावार है। यहां के प्रमुख फल तरबूज एवं ककड़ी हैं। यहां तरबूज की अच्छी कि बहुतायत से होती है। अब नहरों के आ जाने के कारण नारंगी, नींबू, अनार, अमरुद, आदि फल भी पैदा होने लगे हैं। शाकों में मूली, गाजर, प्याज आदि सरलता से उत्पन्न किए जाते है।

पोशाक
शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेंटा काम में लाते हैं। स्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है।

भाषा
यहां के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहां उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहां की लिपि नागरी है, जो बहुधा घसीट रूप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।

दस्तकारी
भेड़ो की अधिकता के कारण यहां ऊन बहुत होता है, जिसके कबंल, लाईयां आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहां के गलीचे एवं दरियां भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दांत की चूड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियां, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहां बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।

साहित्य
साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण, संत और जैनों द्वारा लिखा गया था। चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा में अपनी बात कहते थे। बीकानेर के संत लोक शैली में लिखतें थे। बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। राजस्थानी साहित्य के विकास में बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय़ मिलता रहा था। राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य में जौहर दिखलायें। राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान में दिया था। बारहठ चौहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे। इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उनका काव्य ‘राव जैतसी के छंद‘ डिंगल साहित्य में उँचा स्थान रखती है। बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी में टीका लिखी थी। रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार में भी रहे थे वेलि क्रिसन रुक्मणी री नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है। बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल (नगर वर्णन को गजल कहा गया है)रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे।

ज्योतिषियों का गढ़
बीकानेर ज्योतिषियों का गढ़ है। यहां पूर्व राजघराने के राजगुरू गोस्वामी परिवार में अनेक विख्यात एवं प्रकांड ज्येातिषी एवं कर्मकांडी विद्वान हुए। ज्योतिष के क्षेत्र में दिवंगत पंडित श्री श्रीगोपालजी गोस्वामी का नाम देश-विदेश में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। ज्योतिष और हस्तरेखा के साथ तंत्र, संस्कृत और राजस्थानी साहित्य के क्षेत्र में भी श्रीगोपालजी अग्रणी विशेषज्ञों में शुमार किए जाते थे। पंडित बाबूलालजी शास्त्री, Late. Shivchand G Purohit (Manu Maharaj, Sagar) के जमाने में बीकानेर में ज्योतिष विद्या ने नई ऊंचाइयों को देखा। इसके बाद हर्षा महाराज, अशोक थानवी, प्रेम शंकर शर्मा, अविनाश व्यास और प्रदीप पणिया जैसे कृष्णामूर्ति पद्धति के प्रकाण्ड विद्वानों ने दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई और गुजरात में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। इसके अलावा अच्चा महाराज, व्योमकेश व्यास और लोकनाथ व्यास जैसे लोगों ने ज्योतिष में एक फक्कड़ाना अंदाज रखा। संभ्रांतता से जुडे इस व्यवसाय में इन लोगों ने औघड़ की भूमिका का निर्वहन किया है। नई पीढ़ी के ये ज्योतिषी अब पुराने पड़ने लगे हैं। अधिक कुण्डलियां भी नहीं देखते और नई पीढ़ी में भी अधिक ज्ञान वाले लोगों को एकान्तिक अभाव नजर आता है।

तांत्रिकों का स्थान
बीकानेर में तंत्र से जुडे भी कई फिरके हैं। इनमें जैन एवं नाथ संप्रदाय तांत्रिक अपना विशेष प्रभाव रखते हैं। मुस्लिम तंत्र की उपस्थिति की बात की जाए तो यहां पर दो जिन्नात हैं। एक मोहल्ला चूनगरान में तो दूसरा गोगागेट के पास कहीं। गोगागेट के पास ही नाथ संप्रदाय को दो एक अखाड़े हैं। गंगाशहर और भीनासर में जैन समुदाय का बाहुल्य है। ऐसा माना जाता है कि जैन मुनियों को तंत्र का अच्छा ज्ञान होता है लेकिन यहां के स्थानीय वाशिंदों ने कभी प्रत्यक्ष रूप से उन्हें तांत्रिक क्रियाएं करते हुए नहीं देखा है।
मेले
पर्व एवं त्योहार
यहां हिंदुओं के त्योहारों में शील-सप्तमी, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, दशहरा, दिवाली और होली मुख्य हैं। राजस्थान के अन्य राज्यों की तरह यहां गनगौर, दशहरा, नवरात्रा, रामनवमी, शिवरात्री, गणेश चतुर्थी आदि पर्व भी हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। तीज का यहां विशेष महत्व है। गनगौर एवं तीज स्रियों के मुख्य त्योहार हैं। रक्षाबंधन विशेषकर ब्राह्मणों का तथा दशहरा क्षत्रियों का त्योहार है। दशहरे के दिन बड़ी धूम-धाम के साथ महाराजा की सवारी निकलती है। मुसलमानों के मुख्य त्योहार मुहरर्म, ईदुलफितर, ईद उलजुहा, शबेबरात, बारह रबीउलअव्वल आदि है। महावीर जयंती एवं परयुशन जैनों द्वारा मनाया जाता है। यहां के सिख देश के अन्य भागों की तरह वैशाखी, गुरु नानक जयंती तथा गुरु गोविंद जयंती उत्साह के साथ मनाते है।
मेले
बीकानेर के सामाजिक जीवन में मेलों का विशेष महत्व है। ज्यादातर मेले किसी धार्मिक स्थान पर लगाए जाते हैं। ये मेले स्थानीय व्यापार, खरीद-बिक्री, आदान-प्रदान के मुख्य केन्द्र हैं। महत्वपूर्ण मेले निम्नलिखित हैं-
कोलायत मेला -
यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष के अंतिम दिनों में श्री कोलायत जी में होता है और पूर्णिमा के दिन मुख्य माना जाता है। यहां कपिलेश्वर मुनि के आश्रम होने के कारण इस स्थान का महत्व बढ़ गया है। ग्रामीण लोग काफी संख्या में यहां जुटते है तथा पवित्र झील में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि, जो ब्रह्मा के पुत्र हैं ने अपनी उत्तर-पूर्व की यात्रा के दौरान स्थान के प्राकृतिक सुंदरता के कारण तप के लिए उपर्युक्त समक्षा। मेले की मुख्य विशेषता इसकी दीप-मालिका है। दीपों को आटे से बनाया जाता है जिसमें दीपक जलाकर तालाब में प्रवाह कर दिया है। यहां हर साल लगभग एक लाख तक की भीड़ इकढ्ढा होती है।
मुकाम मेला -
नोखा तहसील में मुकाम नामक गाँव में एक भव्य मेला लगता है। यह मेला श्री जंभेश्वर जी की स्मृति में होता है, जिन्हें बिश्नोई संप्रदाय का स्थापक माना जाता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन मेला भरता हैं। लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए देश के विभिन्न भागों से आते है। पर्यावरण एवं वन्य जीव प्रेमी बिश्नोई समाज के लिए मुकाम अंत्यत पवित्र स्थान हैं।
देशनोक मेला -
यह मेला चैत सुदी १-१० तक तथा आश्विन १-१० दिनों तक करणी जी की स्मृति में लगता है। ये एक चारण स्री हैं जिनके विषय में ऐसा माना जाता है कि इनमें दैविय शक्ति विद्यमान थी। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है। यहां लगभग ३०,००० हजार लोगों तक की भीड़ इकठ्ठा होती है।
नागिनी जी मेला -
देवी नागिनी जी स्मृति में आयोजित यह मेला भादों के धावी अमावश में होता है। इसमें लगभग १०,००० श्रद्धालुगण आते है जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक होती है।
यहां के अन्य महत्वपूर्ण मेलो में कतरियासर का मरु मेला, तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि हैं।
सीसा भैरू-
तीन दिवसीय चलने वाले मेले का आयोजन भैरू भक्त मण्डल पारीक चौक सोनगिरी कुआं, डागा चौक अनेक स्थानों से लोगो का बाबा भैरूनाथ के दर्शन के लिए आते है शहर के साथ-साथ नापासर, नौखा ग्रामिण क्षेत्रों से पैदल यात्री जत्थों के साथ भैरूनाथ के जयकारे के साथ सीसाभैरव आते है इस मेले की विशेषता यह है कि यहां एक विशाल हवन का आयोजन किया जाता है। इसमें लगभग 5,००० श्रद्धालुगण आते है जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक होती है। यह मेला भादों में होता है। देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है।
लाधूनाथ जी मेलाः राजस्थान के मशहूर लोक देवता एवं नायक समाज के प्रिय देवता श्री लादू नाथ जी महाराज का मेला बीकानेर जिले में मसूरी गांव में भरा जाता है। यह राजस्थान के मशहूर संत एवं लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं इन्होंने अपने जीवन में अनेक ग्रंथों की रचनाएं की यह लोग देवता होने के साथ-साथ बहुत बड़े संत भी थे इन के मेले में नायक समाज के लोगों की अधिकता दिखाई देती है यह राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा मेला है इस मेले में कई समाज के लोग आते हैं श्री लादू नाथ जी महाराज एक चमत्कारी और बहुत बड़े संत के रूप में माने जाते हैं इनका मेला बड़ी धूम-धाम से और मनोरंजन का एक प्रमुख स्थान है।
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