MEHRANGARH FORT | IN HINDI JODHPUR
मेहरानगढ़ किला जोधपुर
भारत के राजस्थान राज्य के जोधपुर में स्थित है। ये किला भारत के सबसे बड़े किलो में से एक है। इस किले का निर्माण सं 1460 में राव जोधा ने करवाया था। ये किला शहर से लगभग 410 feet (125 m) की ऊँचाई पर स्थित है और इसे मोटी भव्य दीवारों ने घेरा हुआ है। किले की सीमाओं के भीतर कई महल मौजूद है जो उन पर किये गये बारीक नक्काशी और विशाल प्रांगण के लिए जाने जाते है। एक घुमावदार सड़क भी है जो शहर के लिए जाती है। किले के दूसरे द्वार पर जयपुर की सेनाओ द्वारा किये गए हमले के दौरान फैके गए तोप के गोलों के निशान आज भी देखने को मिलते है। किले के बायीं ओर कीरत सिंह सोडा की छतरी स्थापित है, कीरत सिंह सोडा एक सैनिक थे जो मेहरानगढ़ किले की रक्षा करने के दौरान गिर गए थे ओर उनकी मृत्यु हो गयी थी।
किले में सात द्वार है, जिनमे जयपोल (यथार्थ “विजय”) शामिल है, जिनका निर्माण महाराजा मान सिंह ने बीकानेर और जयपुर सेनाओं पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। फत्तेहपोल (जिसका अर्थ है “विजय”) द्वार का निर्माण महाराजा अजित सिंह ने मुगलो की पराजय को चिन्हित करने के लिए करवाया था। इन पर पड़े खजूर के निशान आज भी कईयो का ध्यान अपनी और आकर्षित करते है।
मेहरानगढ़ किले के भीतर बना संग्रहालय, राजस्थान के सबसे अच्छे माने जाने वाले संग्रहालयों में से एक है। किले के संग्रहालय के एक हिस्से में पुरानी शाही पालकियो की कलेक्शन, जिनमे विस्तृत गुंबददार गिल्ट महडोल पालकी भीं है जिसे सं 1730 में गुजरात के राजयपाल से एक युद्ध में जीता था। इस संग्रहालय के हथियार, वेशभूषा और पेंटिंग्स राठोरो की विरासत को दर्शाती है।
राव जोधा जो राठौर वंश के प्रमुख थे, को भारत में जोधपुर की उत्पत्ति का श्रय जाता है। इन्होने सं 1459 (जोधपुर को पहले मारवाड़ के नाम से जाना जाता था) में जोधपुर की स्थापना की थी। ये रणमल के 24 पुत्रों में से एक थे जो 15 वें राठौर शासक बने थे। राजगद्दी पर बैठने के एक वर्ष पश्चात, राव ने अपनी राजधानी को जोधपुर के एक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया, उस समय एक हज़ार वर्ष पुराने मण्डोर किले को पर्याप्त सुरक्षा वाले स्थान के रूप में माना जाने लगा।
राव नारा (राव समरा के पुत्र) की विश्वसनीय सहायता के कारण, मेवाड़ सेना मंडोर के वशीभूत हो गयी। उसी के साथ राव जोधा ने राव नारा को दीवान का ओहदा सौंप दिया। राव नारा की सहायता से 1 मई 1459 को मंडोर के दक्षिण से लगभग 9 किलोमीटर की दुरी पर इस किले की नीव एक चट्टानी पहाड़ी पर रखी गयी। इस पहाड़ी को Bhaurcheeria और पक्षियों के पहाड़ के नाम से जाना जाता है। किले की निर्माण की कथा के अनुसार, इस पहाड़ी पर एकमात्र मानव निवासी था, जो एक साधु थे और उनका नाम Cheeria नाथजी था, जिन्हे पक्षियों का स्वामी भी कहा जाता था। Cheeria नाथजी को पहाड़ी पर से स्थानांतरित होने पर मजबूर किया जा रहा था, जिससे दुःखी होकर उन्होंने राव जोधा को श्राप से दिया और कहा “जोधा! तुम्हारे नगकोट को पनि की कमी के संकट को भुगतना पड़ेगा”।
राव जोधा ने साधु को शांत करने के लिए किले के भीतर एक घर और एक मंदिर की व्यवस्था की जो साधु जी की ध्यान करने के लिए प्रयोग की जाने वाली गुफा के नजदीक थे। लेकिन कुछ हद तक आज भी इस क्षेत्र को हर 3 से 4 वर्ष के लिए सूखे का कष्ट झेलना पड़ता है। जोधा ने एक अत्यन्त परिमाण लिया और सुनिश्चित किया की नया स्थान अनुकूल सिद्ध हो ; उन्होंने एक आदमी जिसका नाम “राजा राम मेघवाल” था को इसकी नींव में जिन्दा दफ़न करवा दिया। “राजा राम मेघवाल” को ये वादा किया गया था की उनके पश्चात राठोरो द्वारा उनके परिवार की देखभाल की जाएगी। उस दिन से लेकर आज तक उनके वंशज राज बाग़ में रहते है जिसका नाम “राजा राम मेघवाल” उद्यान है, एक संपत्ति जिसे जोधा ने उन्हें विरासत में दिया था।
राव जोधा ने साधु को शांत करने के लिए किले के भीतर एक घर और एक मंदिर की व्यवस्था की जो साधु जी की ध्यान करने के लिए प्रयोग की जाने वाली गुफा के नजदीक थे। लेकिन कुछ हद तक आज भी इस क्षेत्र को हर 3 से 4 वर्ष के लिए सूखे का कष्ट झेलना पड़ता है। जोधा ने एक अत्यन्त परिमाण लिया और सुनिश्चित किया की नया स्थान अनुकूल सिद्ध हो ; उन्होंने एक आदमी जिसका नाम “राजा राम मेघवाल” था को इसकी नींव में जिन्दा दफ़न करवा दिया। “राजा राम मेघवाल” को ये वादा किया गया था की उनके पश्चात राठोरो द्वारा उनके परिवार की देखभाल की जाएगी। उस दिन से लेकर आज तक उनके वंशज राज बाग़ में रहते है जिसका नाम “राजा राम मेघवाल” उद्यान है, एक संपत्ति जिसे जोधा ने उन्हें विरासत में दिया था।
राजस्थानी बोली के मुताबिक इसे ‘Mihirgarh’ बोल जाता था परन्तु इसे बदलकर इसका नाम मेहरानगढ़ रख दिया गया; सूर्य देवता राठौर वंश के मुख्य देवता माने जाते थे। किले के मूल रूप का निर्माण सं 1459 में राव जोधा द्वारा कराया गया था, जिन्होंने जोधपुर की स्थापना की थी। आज काल देखे जाने वाले अधिकांश भाग का निर्माण मारवाड़ के जसवंत सिंह (1638–78) ने करवाया था। ये किला शहर के बिलकुल मध्य में स्थित है जो एक ऊंची पहाड़ी पर 5 किलोमीटर (3.1 mi) तक फैला हुआ है। इसकी दीवारे जो लगभग 36 metres (118 ft) ऊंची और 21 metres (69 ft) चौड़ी है, को राजस्थान के कुछ सुन्दर और ऐतिहासिक महलों ने घेरा हुआ है।
किले में प्रवेश करने के लिए सात द्वारों की श्रृंखला है,
1. जय पोल (विजय का द्वार), जिसका निर्माण सं 1806 में महाराजा मान सिंह द्वारा करवाया गया था
2. फ़तेह पोल, जिसका निर्माण सं 1707 में मुगलो की पराजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था
3. डेढ़ कांग्र पोल, जिसपर आज भी आक्रमण के दौरान फैके गए तोप के गोलों के निशान मौजूद है
4. लोहा पोल, जो किले परिसर के मुख्य द्वार का अंतिम भाग है. इसके पश्चात बायीं ओर रानियों के सती प्रथा के हाथो के निशान पाये जाते है, जिन्होंने सं 1843 में अपने पति, महाराजा मान सिंह की चिता में खुद को भी जला लिया था.
2. फ़तेह पोल, जिसका निर्माण सं 1707 में मुगलो की पराजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था
3. डेढ़ कांग्र पोल, जिसपर आज भी आक्रमण के दौरान फैके गए तोप के गोलों के निशान मौजूद है
4. लोहा पोल, जो किले परिसर के मुख्य द्वार का अंतिम भाग है. इसके पश्चात बायीं ओर रानियों के सती प्रथा के हाथो के निशान पाये जाते है, जिन्होंने सं 1843 में अपने पति, महाराजा मान सिंह की चिता में खुद को भी जला लिया था.
किले की भीतर कई शानदार और सजावटी महल है। इनमे मोतीमहल (Pearl Palace), फूल महल (Flower Palace), शीशा महल (Mirror Palace), सिलेह खाना और दौलत खाना शामिल है। इसके संग्रहालय में पालकियों की कलेक्शन, हौदा, शाही पालने, लघु चित्र, संगीत वाद्ययंत्र, वेशभूषा और फर्नीचर मौजूद है। किले की प्राचीर में कई पुरानी टोपे (जिनमे प्रसिद्ध किलकिला भी समिल्लित है) संरक्षित है।
मेहरानगढ़ में पर्यटकों के आकर्षण:
1. राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक
2. चामुंडा माताजी मंदिर
3. साहसिक गतिविधियां
4. 2008 भगदड़
2. चामुंडा माताजी मंदिर
3. साहसिक गतिविधियां
4. 2008 भगदड़
WITH LOVE , 4 U
जय हिन्द , वन्दे मातरम !
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