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Wednesday, November 7, 2018

AJMER | HISTORY

अजमेर का इतिहास                                                                             



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अजमेर की स्थापना दूसरी शताब्दी में राजा वासुदेव ने की थी। एक दूसरे मत के मुताबिक कहा जाता है कि अजमेर की स्थापना राजा अजयपाल ने की थी। कहा जाता है कि पुराना शहर वर्तमान शहर के दक्षिण-पश्चिम में था।  जिसकी गवाही का अनुमान आज भी यहा स्थित खंडहरो द्वारा लगाया जा सकता है। अजमेर को प्राचीन समय से विभिन्न कालो में अलग अलग नामो से पुकारा गया है। जैसे जेदरूक, जपमीर, अदमीर, जियांगीर और जलोपुर आदि।
शताब्दी ईसा के प्रसिद्ध बुद्ध राजा कनिष्क जिनकी मृत्यु 120 ई° को हुई इस क्षेत्र पर उनका राज था। राजा कनिष्क की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हवेश्क ने 140 ई° तक बडी बडी आन बान से इस क्षेत्र पर शासन किया। हवेश्क केबाद राजावासुदेव गद्दी पर बैठा। एक मत के अनुसार कहा जाता है की वासुदेव ने ही अपने शासन के दौरान अजमेर की नीव रखी थी। परंतु वह अपने बाप दादा की तरह एक मजबूत शासक साबित न हुआ और जगह जगह उसके खिलाफ बगावत होने लगी। बागियो में अनहलपुर का राजा अजयपाल भी था। इसकी राजधानीतख्त पटन ((गुजरात)  थी वह कनिष्क खानदान के अधीन था और उन्हे टेक्स दिया करता था। अजयपाल ने बागियो को एकत्र कर राजा वासुदेव की सेना को पराजित कर दिया और राजपूताना के कई इलाको पर अपना कब्जा कर लिया। इसमे अजमेर का इलाका भी शामिल था। अजयपाल ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाकर एक अलग राज्य स्थापित कर लिया।  यहा इस मत को बल मिलता है कि अजमेर की बुनियाद राजा वासुदेव ने पहले ही डाल दी थी। जब अजयपाल ने वासुदेव को पराजित करके अजमेर को अपनी राजधानी घोषित किया तो अजयपाल ने अजमेर का विस्तार किया। यह अजमेर का इतिहास का सच है।

इसके अजयपाल अजमेर पर राजा के रूप में कई सालो तक राज करता रहा। 330ई° में गुप्तवंश के साहसी राजा चंद्रगुप्त ने सारे उत्तरी व राजपूताना क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। इस प्रकार अजमेर पर पाचवी शताब्दी तक गुप्त वंश शासन रहा। गुप्तवंश के शासन काल मे मध्य एशिया के वहशी कबिलो ने भारत पर हमला किया और एक बडे क्षेत्र कै तबाह व बर्बाद कर डाला। गुप्तवंश का शासन भी इनकी वहशत व दरिदंगी के तूफान में बह गया। लगभग 150 साल तक राजपूताना क्षेत्र में अफरा तफरी का दौर रहा।
अजमेर की स्थापना दूसरी शताब्दी में राजा वासुदेव ने की थी। एक दूसरे मत के मुताबिक कहा जाता है कि अजमेर की स्थापना राजा अजयपाल ने की थी। कहा जाता है कि पुराना शहर वर्तमान शहर के दक्षिण-पश्चिम में था।  जिसकी गवाही का अनुमान आज भी यहा स्थित खंडहरो द्वारा लगाया जा सकता है। अजमेर को प्राचीन समय से विभिन्न कालो में अलग अलग नामो से पुकारा गया है। जैसे जेदरूक, जपमीर, अदमीर, जियांगीर और जलोपुर आदि।
शताब्दी ईसा के प्रसिद्ध बुद्ध राजा कनिष्क जिनकी मृत्यु 120 ई° को हुई इस क्षेत्र पर उनका राज था। राजा कनिष्क की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हवेश्क ने 140 ई° तक बडी बडी आन बान से इस क्षेत्र पर शासन किया। हवेश्क केबाद राजावासुदेव गद्दी पर बैठा। एक मत के अनुसार कहा जाता है की वासुदेव ने ही अपने शासन के दौरान अजमेर की नीव रखी थी। परंतु वह अपने बाप दादा की तरह एक मजबूत शासक साबित न हुआ और जगह जगह उसके खिलाफ बगावत होने लगी। बागियो में अनहलपुर का राजा अजयपाल भी था। इसकी राजधानीतख्त पटन ((गुजरात)  थी वह कनिष्क खानदान के अधीन था और उन्हे टेक्स दिया करता था। अजयपाल ने बागियो को एकत्र कर राजा वासुदेव की सेना को पराजित कर दिया और राजपूताना के कई इलाको पर अपना कब्जा कर लिया। इसमे अजमेर का इलाका भी शामिल था। अजयपाल ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाकर एक अलग राज्य स्थापित कर लिया।  यहा इस मत को बल मिलता है कि अजमेर की बुनियाद राजा वासुदेव ने पहले ही डाल दी थी। जब अजयपाल ने वासुदेव को पराजित करके अजमेर को अपनी राजधानी घोषित किया तो अजयपाल ने अजमेर का विस्तार किया। यह अजमेर का इतिहास का सच है।

इसके अजयपाल अजमेर पर राजा के रूप में कई सालो तक राज करता रहा। 330ई° में गुप्तवंश के साहसी राजा चंद्रगुप्त ने सारे उत्तरी व राजपूताना क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। इस प्रकार अजमेर पर पाचवी शताब्दी तक गुप्त वंश शासन रहा। गुप्तवंश के शासन काल मे मध्य एशिया के वहशी कबिलो ने भारत पर हमला किया और एक बडे क्षेत्र कै तबाह व बर्बाद कर डाला। गुप्तवंश का शासन भी इनकी वहशत व दरिदंगी के तूफान में बह गया। लगभग 150 साल तक राजपूताना क्षेत्र में अफरा तफरी का दौर रहा।

भारत में इस्लामी हुकूमत की स्थापना के बाद अजमेर और दिल्ली पर लगभग ढाई सौ साल तक मुस्लिम शासको का शासन रहा। सन् 1380 ई° में सुलतान फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद दिल्ली का केन्द्रीय शासन कमजोर हो गया। दिल्ली की गद्दी के कई दावेदार हो गए जिनमे आआपसी रंजिश हो गई। राजपूतो ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। और सन् 1400 ई° में अजमेर पर फिर से कब्जा कर लिया। लगभग 55 साल तक मेवाड के राजपूतो ने अजमेर पर शासन किया। 1445 में मांडो के बादशाह ने अजमेर पर कब्जा कर लिया। 1505 में फिर से मेवाड राजपूतो ने अजमेर पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया।
28 साल के बाद 1533 ई° में गुजरात के बादशाह ने भीषण युद्ध के बाद मेवाडो से अजमेर को छीन लिया। लेकिन अगले ही साल मारवाड के राठौर खानदान ने गुजरात की सेना को अजमेर से खदेड दिया और 1556ई° तक अजमेर पर शासन करते रहे।
अजमेर का इतिहास में 1556 में मुगलो का अवागमन हुआ। जलालुद्दीन अकबर ने अजमेर को फतह कर अपने कब्जे में ले लिया। और 16वी शताब्दी के मध्य में अजमेर ताकतवर मुगल सम्राज्य एक हिस्सा बन गया। मुगल बादशाहो ने अजमेर में बहुत विकास कराया बडी बडी मजबूत इमारतो का निर्माण कराया। कई मुगल बादशाह ख्वाजा गरीब नवाज को मानते थे और वहा हाजरी भी देते थे। सन् 1556 से 1743 तक का दौर अजमेर के लिए बहुत खास रहा है। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल हूकूमत बिखरने लगी तख्त के कई दावेदारो ने हूकूमत की जडे खोखली कर दी। मुगल सम्रज्य अपने पतन की ओर जाने लगा। कई छोटे छोटे राज्य और नवाब अपने राज्य बना बैठे। बिखराव के इस दौर में 1756 में ग्वालियर के राजा सिधिया ने अजमेर पर कब्जा कर लिया। 1787 तक अजमेर मराठो के कब्जे में रहा। 1787 में राठौरो ने मराठो को अजमेर से निकाल दिया और चार साल तक अजमेर पर हूकुमत की। 1796 में मराठो ने फिर से अजमेर पर कब्जा कर लिया। सन् 1818 में बाबूराव सिंधिया और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच एक संधि से अजमेर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार में चला गया। 1947 तक अजमेर पर अंग्रेजो का राज रहा। 1947 से भारत की आजादी के बाद अजमेर भारत के प्रसिद्ध शहर के रूप में जाना जाने लगा राज्यो के गठन के बाद अजमेर राजस्थान का प्रमुख शहर बन गया और वर्तमान में यह राजस्थान राज्य का एक जिला है।

WITH LOVE , 4 U

पधारो म्हारो राजस्थान 


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