Tourist spot in ajmer
अब्दुल्ला खान का मकबरा
अब्दुल्ला खान का मकबरा सफ़ेद संगमरमर से बना एक सुंदर संस्मरण है जो सैयद भाइयों ने 1710 ई. में अपने पिताजी के लिए बनवाया था। यह आयताकार मकबरा चार चरणों के साथ एक उठे हुए मंच पर स्थित है, जिसे सजावटी मेहराबों एवं चार मीनारों के साथ अलंकृत किया गया है। यह कब्र उत्तरकालीन मुगल काल का उत्कृष्ट प्रतीक है। यहाँ लगी हुई एक पट्टी इसके पास एक मस्जिद का होना बताती है; हालांकि इसके पास केवल अब्दुला खान की पत्नी का मकबरा ही स्थित है।
अकबर का महल और संग्रहालय
अकबर का महल और संग्रहालय, 1570 ई. में बनाया गया और यह राजस्थान के सबसे मजबूत किलों में गिना जाता है। इसका प्रयोग मुगल सम्राट जहाँगीर और मुगल दरबार के अंग्रेज राजदूत सर थॉमस रो, की बैठक की जगह के रूप में किया गया था। यह महल बादशाह एवं उनके सैनिकों के लिए निवास स्थान के रूप में प्रयुक्त होता था जब वे अजमेर में होते थे। 1908 में इसे संग्रहालय में बदल दिया गया, जिसमें छठी एवं सातवी शताब्दी एवं उसके बाद की कई हिन्दू मूर्तियाँ रखी हुई हैं। इन मूर्तियों की अधिकतर बनावट राजपूत और मुगल शैली के मिश्रण को दर्शाती है। काले संगमरमर से बनी देवी काली की एक बड़ी प्रतिमा यहाँ का सबसे प्रसिद्ध आकर्षण है। प्राचीन सैन्य और युद्ध उपकरण, प्राचीन तोपखाने और हथियार, मूर्तियाँ और पत्थर की मूर्तियाँ भी इस संग्रहालय में देखी जा सकती है।
अकबरी मस्जिद
अकबरी मस्जिद जो मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा 1571 में बनवाई गई थी, दरगाह शरीफ में बुलंद दरवाज़ा एवं शाहजहानी दरवाज़े के मध्य स्थित है। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह मस्जिद अब मोईनुआ उस्मानिया दारुल-उलूम है जो कि अरबी एवं फारसी में धार्मिक शिक्षा के विद्यालय हैं।
इस मस्जिद के निर्माण में हरे एवं सफ़ेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है। इस धार्मिक स्थल का निर्माण बादशाह अकबर ने तब करवाया था जब उनकी अपना उत्तराधिकारी पाने की दरगाह शरीफ में की गयी प्रार्थना पूरी हुई थी।
अंतेड की माता मंदिर
अंतेड की माता मंदिर एक जैन मंदिर है जो दिगंबर समुदाय की पारंपरिक संस्कृति को दर्शाता है। इस मंदिर में बड़ी संख्या में छतरी और चबूतरे हैं। स्मारकों में पेंटिंग्स, नक्काशी और अन्य मूर्तियाँ हैं जो जैन समुदाय की समृद्ध परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। रक्षाबंधन का त्यौहार यहाँ बड़े उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है।
नासिया मंदिर / लाल मंदिर
नासिया मंदिर जिसे लाल मंदिर भी कहा जाता है, का निर्माण 1865 में हुआ था और यह अजमेर में पृथ्वीराज मार्ग पर स्थित है। मंदिर की संरचना दो मंजिली है जो प्रथम जैन तीर्थांकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। भवन दो भागों में बनता हुआ है: एक भाग जो पूजा का क्षेत्र है जहाँ भगवान आदिनाथ की मूर्ति है और दूसरे भाग में एक हॉल (कक्ष) है जहाँ संग्रहालय है। संग्रहालय की आंतरिक संरचना सोने की बनी हुई है और यह भगवान आदिनाथ के जीवन के पाँच चरणों जिन्हें पंच कल्याणक कहा जाता है, को दर्शाती है। इसका क्षेत्र 3200 वर्ग फुट है और यह बेल्जियम के रंगीन काँच, खनिज रंगों और रंगीन काँचों से सुसज्जित है। इसके केंद्र में एक कक्ष है जो सोने और चाँदी से सुसज्जित है और इसे “गोल्डन टेंपल” (स्वर्ण मंदिर) भी कहा जाता है। इस मंदिर में लकड़ी पर सोने का काम, काँच की नक्काशी और पेंटिंग भी देखने को मिलती है। यह मंदिर “सोनी जी की सैयां” नाम से भी प्रसिद्द इस मंदिर का नाम ऐसा इसलिए पड़ा क्योंकि यह मूल्यवान पत्थरों, सोने और चाँदी से सजा हुआ है।
फॉय सागर झील
फॉय सागर झील एक कृत्रिम झील है जिसका निर्माण अजमेर के पास वर्ष 1892 में अंग्रेज़ वास्तुकार श्री फॉय की निगरानी में हुआ था। झील का निर्माण मूल रूप से एक सूखा राहत परियोजना के हिस्से के तहत् किया गया था, एवं यह पानी के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में सेवा देती है। झील की सुन्दरता अपने आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। झील एक सपाट आकार की है जो देखने में एक पैनकेक की तरह लगती है। अब यह पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच समान रूप से एक पिकनिक स्थल की तरह व्यापक रूप से लोकप्रिय है।

शाहजहाँ की मस्जिद
शाहजहाँ की मस्जिद सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई है जो दरगाह शरीफ के भीतरी आंगन में स्थित है। मस्जिद की संरचना में निचले तोरण मार्ग के साथ 30.5 मीटर लंबा मैदान है एवं पवित्र स्थानों पर जाली के काम के साथ नाज़ुक नक्काशियाँ हैं। मस्जिद वास्तुकला की ठेठ मुगल शैली में बनाई गई है एवं 11 मेहराबें इसकी विशेषताएँ हैं। 41 मीटर ऊंची मस्जिद को नाज़ुक तरीके से बनाया गया है एवं इसके शिखर पर एक सुंदर संगमरमर का गुंबद है। लोगों का यह विश्वास है कि इस मस्जिद के गुंबद को बनाने के लिए जिस संगमरमर का प्रयोग हुआ है वह उसी खदान से निकाला गया है जिसमें से ताजमहल के लिए संगमरमर निकाला गया था। मस्जिद जो हरे और सफ़ेद रंग की है, मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा बनाई गई थी।
मेयो महाविद्यालय
मेयो महाविद्यालय की स्थापना मेयो के छठवे अर्ल द्वारा की गयी थी, जो 1869 से 1872 तक भारत के राजप्रतिनिधि (वाइसराय) थे, ताकि रियासत के शासकों को ब्रिटिश मानकों के अनुसार शिक्षा प्रदान की जा सके। अंग्रेजों ने इस विद्यालय की स्थापना, भारतीय संभ्रांत वर्ग विशेषतः राजपुताना कुलीन वंश को शिक्षा प्रदान करने हेतु की थी। महाविद्यालय का मुख्य भवन मेजर मेंट द्वारा भारतीय - अरबी शैली में डिजाइन किया गया था, जिसे जयपुर के राज्य अभियंता, सर सेमुअल स्विंटन जेकब द्वारा प्रसिद्ध किया गया था। सफ़ेद संगमरमर से बनी यह इमारत भारतीय-अरबी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदहारण है। इस इमारत का निर्माण वर्ष 1877 से 1885 के बीच आठ वर्षों में हुआ था। झालावाड़ हाउस के अंदर स्थित संग्रहालय कई प्राचीन कलाकृतियों और शस्त्रागार वर्गों का घर है। महाविद्यालय का कुलचिन्ह कला विद्यालय, लाहौर के पूर्व प्रधानाचार्य लॉकवुड किपलिंग द्वारा डिजाइन किया गया है। वे प्रसिद्ध लेखक रूडयार्ड किपलिंग के पिताजी भी थे।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है जिसके पीछे एक रोचक कथा है। ऐसा माना जाता है कि यह संरचना अढ़ाई दिन में बनाई गई थी। यह भवन मूल रूप से एक संस्कृत विद्यालय था जिसे मोहम्मद गोरी ने 1198 ई. में मस्जिद में बदल दिया था। यह मस्जिद एक दीवार से घिरी हुई है जिसमें 7 मेहराबें हैं, जिन पर कुरान की आयतें लिखी गई हैं। हेरत के अबू बकर द्वारा डिजाइन की गई यह मस्जिद भारतीय- मुस्लिम वास्तुकला का एक उदाहरण है। बाद में 1230 ई. में सुलतान अल्त्मुश द्वारा एक उठी हुई मेहराब के नीचे जाली जोड़ दी गई थी। उत्तर में एक दरवाज़ा मस्जिद का प्रवेश द्वार है। सामने का भाग पीले बलुआ पत्थर से बनी कई मेहराबों द्वारा सजाया गया है। मुख्य मेहराब के किनारे छह छोटी मेहराबें एवं कई छोटे छोटे आयताकार फलक हैं जो प्रकाश तंत्र बनाते हैं। इस प्रकार की विशेषताएं अधिकतर प्राचीन अरबी मस्जिदों में पाई जाती है। भवन के आंतरिक भाग में एक मुख्य कमरा है जो कई स्तंभों द्वारा समर्थित है। संरचना को अधिक उंचाई प्रदान करने के लिए खंभों को एक के उपर एक रखा गया है। स्तंभ जो चौड़े आधार के साथ बनाए गये हैं, उंचाई बढने के साथ धुंधले होते जाते हैं।

No comments:
Post a Comment