History of Bundi in hindi
- बूंदी का इतिहास
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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से समृद्ध बूंदी राजस्थान में अक्सर कम ही घूमा जाता है। बूंदी का इतिहास 12वीं सदी के प्रारंभिक काल तक जाता है। बूंदी से शूरता और सम्मान के कई किस्से जुड़े हैं। यह शहर किसी समय में राजस्थान की रियासतों की राजधानी था।
अरावली पर्वत शृंखलाओं से घिरा ऐतिहासिक शहर बूँदी राजस्थान के हाड़ौती अंचल में स्थित है।

1193 में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चैहान को उनके बीच हुई भीषण लड़ाई में हराया। पृथ्वीराज चैहान के कुछ लोग पास के इलाके में चंबल घाटी में भाग गए। घाटी के इलाके में कुछ स्थानीय जनजातियां और गुट रहते थे और उन लोगों ने इन पर प्रभुत्व जमाया और हड़ौती के इलाके को अपने अधिकार में ले लिया।
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पृथ्वीराज चैहान |
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मोहम्मद गौरी |
बूँदी की स्थापना
बूँदी की स्थापना बूंदा मीणा ने की थी।बूंदा मीणा के नाम पर इसका नाम बून्दी रखा गया। उस समय बूंदी में मीणा सरदारों का शासन था।
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बूंदा मीणा |
हाडा राजपूत' चौहानों की प्रसिद्ध खाप रही है | लक्ष्मण नाडोल के पुत्र ( अश्वपाल ,अधिराज ) के पुत्र माणक राव हुए | माणक के बाद क्रमश सांभरण ,जैतराव ,अनंगराव ,कुंतसी,विजयपाल व् हरराज (हाड़ा ) के वंशज कहलाते है | हरराज के बाद क्रमश बंगदेव और देव हाड़ा हुए | देव हाड़ा ने मीणों के बम्बावदे स्थान को जीतकर बूंदी राज्य की स्थापना की | वि.सं.१२९८ को देवा द्वारा बूंदी राज्य की स्थापना मानी गयी हे |
कुछ इतिहासकारों ने १३९८ बताया है | नेणसी ने अपनी ख्यात में लिखा हे की देवा हाड़ा भैसरोड नामक स्थान पर रहता था | उसकी पुत्री का विवाह राना अरिसिंह के साथ हुआ | अरिसिंह की सहायता से उसने मीणों से बूंदी क्षेत्र जीता | ओझाजी ने देवा हाड़ा को अरिसिंह का समकालीन न मानकर हम्मीर का समकालीन बताया है और देवा को बूंदी दिलाने का श्रेय राना हमीर को दिया है |
मैनाल का १४४६ वि.का शिलालेख हाड़ा मालदेव का है जिससे वंशक्रम इस प्रकार है :- देवा ,रतपाल ,केलण ,कुंतल व् महादेव | इस शिलालेख में लिखा है की उसकी तलवार शत्रुओं की आँखों में चकाचोंध उत्पन्न कर देती थी | उसने दिलावर खां गोरी पर अपनी तलवार उठाकर मेवाड़ के स्वामी खेता की रक्षा की | सुल्तान की सेना को अपने पैरोतले कुचलकर नरेन्द्र खेता को विजयी दिलाई | अतः सिद्ध होता हे की खेता महादेव का समकालीन था | खेता की म्रत्यु वि.१४३९ में महादेव हाड़ा मोजूद था |
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