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Thursday, November 8, 2018

अलवर | ALWAR INTRO |TOURE | IN HINDI


      अलवर 

INTRO & TOURIST SPOT
अलवर  | ALWAR INTRO |TOURE | IN HINDI
अलवर भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह नगर राजस्थान के मेवात अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर का प्राचीन नाम 'शाल्वपुर' था। चारदीवारी और खाई से घिरे इस शहर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औधोगिक नगर हैं तथा आठवाँ बड़ा नगर हैं। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं। अलवर यादव बाहुल्य जिला है। मतस्य प्रदेश अथवा अलवर का राठ क्षेत्र(बहरोड तथा नीमराना और मुंडावर का क्षेत्र)पूरे जिले में अपना अलग ही प्रभाव रखता है। राठ के बारे में एक बात कही जाती है "ना राठ नवै, ना राठ मनै"। अर्थात राठ ना तो झुकाने से झुकता है और ना ही मनाने से मानता है ,राठ क्षेत्र अपनी मर्जी से चलता है।
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अलवर के पर्यटन स्थल 

पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पड़ा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है शहर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्राहलय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है। इसी झगडे के कारण यह बंद पड़ा है, बाला किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है, सब कुछ गार्डो के हाथों में है, वे चाहें तो आपको घूमने दें, या मना कर दें। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं, पर अलवर का सौन्दर्य पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करता है।

फतहगंज गुम्बद 

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फतहगंज का मकबरा पाँच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमाँयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। यह प्राय ९ बजे से पहले भी खुल जाता है। इसे देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी जा सकते हैं। मोती डुंगरी का निर्माण १८८२ में हुआ था। यह १९२८ तक अलवर के शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुड़वाकर यहां इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था, वह डूब गया। जहाज डूबने पर महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत न बनने से यह फायदा हुआ कि पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ़ सकते हैं और शहर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं।

पुर्जन विहार 

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यह एक खूबसूरत बाग है, जिसके बीच में एक बड़ा हरित हाऊस (Green house) है जिसे शिमला कहा जाता है। महाराज शियोधन सिंह ने १८६८ में इस बगीचे को बनवाया और महाराज मंगल सिंह ने १८८५ में शिमला का निर्माण कराया। इस बगीचे में अनेक छायादार मार्ग हैं और कई फव्वारे लगे हुए हैं। आगे दिया शीर्षक कंपनी बाग़ इसी का वर्णन है।

कम्पनी बाग 

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कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। शिमला (हरित हाउस) में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह शहर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और बीच में ऊपर एक शिव मंदिर है। होप सर्कल से सात सड़के विभिन्न स्थलों तक जाती है। एक घंटाघर तक जाती है जहाँ पर कलाकंद बाजार भी है। एक सड़क त्रिपोलिया गेट से सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। त्रिपोलिया में कई छोटे-मोटे मंदिर हैं। सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाजा बाजार पडते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है।

सिटी पैलेस 

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सिटी पैलेस एक खूबसूरत परिसर है: गेट के पीछे एक मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। इस महल का निर्माण १७९३ में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। पूरी इमारत में जिलाधीश और पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट आदि के सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है। वैसे इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर तीन हॉल्स में विभक्त संग्रहालय भी है जिसे देखने का समय सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक है, शुक्रवार को अवकाश रहता है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखे हैं, दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगजेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री प्रदर्शित है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। इसी संग्रहालय की 'एक मियान में दो तलवार' यहाँ का विशेष आकर्षण है।
सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक छोटा खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर कहते हैं। इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के पानी तक सीढियाँ बनी हैं। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। यहां कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा है। जलाशय के साथ मंदिरों की एक श्रृंखला भी है। दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बना संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।

विजय मंदिर झील महल 

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यह खूबसूरत महल १९१८ में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवास था। इसका ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो वाले इन दोनों स्थलों तक पहुंचाने के लिए २०० रु लेते हैं। पारिवारिक ङागडे के कारण यह महल आजकल बंद है, यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है।

बाला किला, अलवर 

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सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके ऊपर अरावली की पहाड़ियाँ हैं, जिन पर बाला किला बना है। बाला किले की दीवार पूरी पहाडी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर शहर में यह सबसे पुरानी इमारत है, जो लगभग ९२८ ई० में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देख नहीं सकते, क्योंकि इसमे पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अलवर अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक अच्छा सड़क मार्ग है। दोनों तरफ छायादार पेड़ लगे हैं। रास्ते में पत्थरों की दीवारें दिखाई देती हैं, जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह ६ बजे से शाम ७ बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता का मंदिर इसी के रास्ते में है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को ९ बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए तब पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।

जय समन्द झील 

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हरी-भरी पहाडियां केवल अलवर में ही नहीं है, इसके पास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। शहर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने १९१० में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर नजारा है। जय समन्द रोड बहुत ही परेशान करने वाला है। अत: जय समन्द, सिलीसेड और अलवर घूमने के लिए ऑटो के स्थान पर टैक्सी लीजिए। यह चार-पांच घंटे में आपको अंतर्राज्यीय बस अड्डे से अलवर पहुंचा देगी। इसके लिए टैक्सी वाले पर्यटकों से ४००-५०० रु लेते हैं। झील के पास रूकने की कोई व्यवस्था नहीं है।

सिलीसेढ झील 

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सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने १८४५ में करवाया था। इस झील से रूपारल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढकर १०.५ वर्ग किमी हो जाता है। झील के चारों ओर हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस झील को राजस्थान का नंदनकानन भी कहते हैं इस झील की भराव क्षमता लगभग २८ फीट हैं। वर्षा ऋतु में यहाँ पर बहुत पर्यटक आते हैं। इस झील के पूर्व दिशा में एक अन्य झील जयसमंद स्थित है।

कुंडला 

कुण्डला गाँव चारो ओर से पर्वत से घिरा हुआ है। यहाँ का दृष्य बहुत हरा-भरा रहता है।

झिलमिलदेह झील अजबगढ 

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दौसा अलवर वाया अजबगढ थानागाजी रोड़ पर यह झील चारों ओर से अरावली श्रृंखलाओं से घिरे अजबगढ बाँध के एकदम निचे ( नहर क्षेत्र में ) स्थित है यहाँ पर एक छोटा सा घाट बना हुआ है जहाँ पर लोग कूद कूद कर नहाने का मोका नहीं गवाँते है ! लेकिन वर्तमान में वर्षा के अभाव की वजह से यह झील अपना अस्तित्व बचाने की मुश्किल में है ! इस झील के एक तरफ भारत की जानी पहचानी पाँच सीतारा होटल AMANBAGH HOTEL है जो विदेशी पर्यटकों को अजबगढ भानगढ की ऐतिहासिक धरा पर बुलाने के लिए विश्व विख्यात है ! वर्षाती दिनों में यदि अजबगढ बाँध पूर्ण रूप से भर जाए तो यहाँ का दृश्य मुम्बई और शिमला दोनों के मिश्रण जैसा हो जाता है क्योंकि अजबगढ बाँध समुद्र जैसा दृश्य दिखाने व इसके अन्दर पुरानी छत्तरीयाँ टापू की तरह और बाँध के ऊपरी छोर पर अजबगढ के 27 गुवाड़ा (गाँव) बसे हुए है जिसमें गुवाड़ा बिरकड़ी की सीमाओं में पाँच सीतारा होटल अमनबाग है जो प्रकृति की छँटाओं का आनंद लेने का अनोखा स्थान है! इसके अलावा अलवर में नैहड़ा की छतरी जिसमें मुख्यतः अजबगढ प्रतापगढ व थानागाजी के ऐतिहासिक खण्डर व किले महल शामिल है, ऐतिहासिक नगर भानगढ, पवित्र पूजनिय धाम नारायणी माता व रिषी पाराशर महाराज का मंदिर है जो एक आस्था के साथ प्रकृति के सोन्द्रय लिय क्षेत्रीय लोगों के दिलों में बसा हुआ है! यहाँ का सुप्रसिद्ध नारायणी माता का मंदिर सती धाम है जिसकी शक्ति का आभास वहाँ जाते ही हो जाता है क्योंकि माँ की शक्ति की वजह से मंदिर के आगे आज भी पवित्र जल धारा बहती है जो नदी नाले से नहीं बल्कि समतल धरा से अपने आप निकल रही है, खास बात यह है कि यह धारा रूकी हुई नहीं बल्कि लगातार गतिशील है राजस्थान में यह धाम श्रद्धा के लिए व मनोकामना के लिए सुप्रसिद्ध है !

        WITH LOVE , 4 U

जय हिन्द ,  वन्दे  मातरम 

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