History of Bikaner
बीकानेर राज्य जो जांगलू प्रदेश के नाम से भी इतिहास में जाना जाता है, राजपूताने की 21 रियासतों में महत्त्वपूर्ण था| इस राज्य की स्थापना मारवाड़ के शासक राव जोधा के पितृभक्त पुत्र राव बीका ने 15 वीं सदी में की थी| राव बीका वीर, नीतिज्ञ और कुशल प्रशासक थे, उन्होंने अपने बाहुबल से जांगलू प्रदेश पर राज्य स्थापित कर बीकानेर नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया, जिस पर उसके वीर वंशजों ने रियासतों के विलीनीकरण तक राज्य किया| मुग़ल शासकों ने इस राज्य को विजय करने की अपेक्षा यहाँ के शासकों से मेल रखने में भलाई समझी और यहाँ के राजाओं के साथ मुगलों के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बड़े ऊँचे दर्जे के थे, जो मुग़ल शासन के पतन तक बने रहे|
यही नहीं बीकानेर राज्य ने मराठों व अंग्रेजों को कभी भी खिराज आदि नहीं दी, जबकि भारत के अधिकांश राज्यों को प्रतिवर्ष एक निश्चित रकम देनी पड़ती थी| बीकानेर के राजाओं में अधिकांश स्वयं विद्वान और विद्याप्रेमी हुए है| उनके रचे ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है| आज भी बीकानेर में नरेशों के संरक्षित संस्कृत व राजस्थानी भषा के ग्रन्थों का संग्रह बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय में उपलब्ध है| महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण भारत के ब्राह्मणों से अनेक ऐसे ग्रन्थ लाकर सहेजे और उन्हें मुगलों द्वारा नष्ट होने से बचाया|
हिंदुत्व को बचाने में भी बीकानेर राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है| राजपूताने के राजाओं का छल से धर्म परिवर्तन कराने की औरंगजेब की योजना को बीकानेर के महाराजा कर्णसिंह के नेतृत्व में असफल किया गया था| उनके इसी कार्य को लेकर राजपूताने के राजाओं ने उन्हें जंगलधर बादशाह की उपाधि से विभूषित किया गया था|
बीकानेर राज्य सदा से उन्नतिशील रहा है| राज्य की स्थापना के बाद ही यहाँ की प्रगति उल्लेखनीय रही है| बीकानेर के यशस्वी महाराजा गंगासिंह जी द्वारा निर्मित गंग नहर से यहाँ की उन्नति के युगांतरकारी प्रगति की| गंग नहर से कृषि को बढ़ावा मिला, जिसका फायदा यहाँ के आम नागरिक को मिला और लोगों की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ| यही नहीं महाराजा बीकानेर ने आवागमन को सुगम बनाने के लिए रेल लाइन की स्थापना की| रेल यातायात की सुविधा मिलने के बाद इस राज्य की व्यापारिक, आर्थिक और राजनैतिक हर क्षेत्र में प्रगति हुई|
आज भी बीकानेर नरेशों द्वारा समय समय पर निर्मित किलों, भवनों आदि को देखने के लिए असंख्य विदेशी सैलानी बीकानेर आते है, जिससे यहाँ पर्यटन कारोबार खून फलफूल रहा है और लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है|
राजस्थान की मरूस्थल का अपना अलबेला इतिहास, अपनी अनूठी पहचान लिए खास तौर पर प्रसिद्ध है। यहां का रिवाज, परिधान मन को मोह लेता है। राजस्थान में बीकानेर का इतिहास (History of Bikaner in Hindi) बरसों पुराना है, तो आइए जानते हैं बीकानेर का इतिहास |
बीकानेर का निर्माण राव बीका जी ने किया । राव बीका जी राठौर वंश के थे। उनके पिता का नाम राव जोधा (Rao Jodha) व माताजी का नाम रानी नोरंगदे (Rani Norangde) था। उनके पिताजी जोधपुर के शासक थे और बीका जी का जन्म 5 अगस्त 1438 मे हुआ। वे होनहार व प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। ऐसा कहा जाता है कि एक बार बीका जी को दरबार में देर से उपस्थित होने के कारण राव जोधा ने व्यंग किया। राव बीका हाथ जोड अपना आसन ग्रहण किया और अपने चाचा से कानाफूसी करने लगे। इस पर जोधा जी ने कहा किसी देश पर कूच करने का फैसला किया है क्या? इस बीका जी ने कहा कि आप की अनुमति मिलेगी तो ये कार्य भी सफल होगा।
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राव बीकाजी जिन्होने बीकानेर बसाया
बीकानेर के राजा रायसिंह
राव कल्याण ने मुगलो की अधीनता स्वीकार की और अपने पुत्र पृथ्वीराज और कृष्ण को अकबर दरबार में भेज दिया। पृथ्वीराज अकबर के नवरत्नों में से एक था। राजा रायसिंह के समय मुगलों के साथ बीकानेर के संबंध और घनिष्ठ हो गए। राजा रायसिंह अकबर का विश्वासपात्र था। जब अकबर बीमारी से ग्रस्त हुए तब जहांगीर ने सबसे पहले सूचना देकर के रायसिंह को आमंत्रित किया। बीकाजी से लेकर महाराजा नरेंद्र सिंह तक कुल 24 शासक हुए इनमें से सभी शासक अपने शासन का संचालन इसी तरह किया महाराजा दलपत सिंह सबसे अधिक आयु में शासक बने जबकि महाराजा प्रताप सिंह सबसे कम उम्र की आयु में शासक बने, जब वे शासक बने तब उनकी आयु मात्र 6 वर्ष की थी। सबसे अधिक समय तक राज्य करने वाले महाराजा गंगा सिंह ही रहे जिनका कार्यकाल 55 वर्ष 5 माह और 2 दिन रहा।
जूनागढ़ का किला
जूनागढ़ के किले की स्थापना महाराजा रायसिंह न की जो कि बीकानेर का सबसे बड़ा किला है उसकी स्थापना महाराजा रायसिंह 1645 मे निर्माण कार्य शुरू किया जो कि 1650 तैयार हुआ। इसकी देखरेख करने की करमचंद बच्छावत ने की । जूनागढ़ किले की परिधि 1750 परकोटे की दीवारे 145 फुट चौड़ी तथा 40 फुट ऊंची है। बीकानेर में 5 दरवाजे बनाए गए हैं जो उस समय में अलग अलग नाम से विख्यात रहे हैं जिनमें से प्रमुख है दिल्ली का दरवाजा, यशवंत सागर, गणेश दरवाजा वर्तमान में उनके नाम बदल दी गए हैं कोटगेट विश्वकर्मा गेट जस्सूसर गेट नत्थूसर गेट यहां सबसे पहले सिक्कों का निर्माण महाराजा गज सिंह के शासन में हुआ यह कार्य महाराजा डूंगर सिंह तक जारी रहा इसके बाद अंग्रेजों के अधीन होने के कारण सिक्के का चलन बंद कर दिया गया। जूनागढ़ में आज भी कई प्राचीन कलात्मकता की झलक बखूबी देखने को मिल जाएगी।
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